आज इतना बखेड़ा है क्यों ?
क्या हो गया ऐसा जो न हुआ था
जो सच्चा है वो गंगा का धुला नहीं,
जो है झूठा वो नाले से गन्दा नहीं.
अय्यर का बयां, कलमाड़ी का काम
इन पंक्तियों से परे नहीं.
हमने देखा है परेशानी भरी जिंदगी को
जब आलोचक होते हैं घर वाले व
असहयोग की भावना होती है दोस्तों में,
फिर भी जूनून होता है लक्ष्य को पाने में .
सब होते है साथ इस इज्जत के भागीदार
लेकिन यह तो है एक परिवार .
जब बात हो अपने भारत की, खेल खेल के महाखेल की
जिसे अज खेल रहे राजनीती के कई दिगज खिलाडी
हमेशा की तरह हम बने हुए है आज भी आनाड़ी.
बचपन में सिखा था हमने ,
चीजे उतनी ख़राब नहीं होती जीतनी दिखती हैं
अगर आज ना होती हमारी तैयारिया
तो कामनवेल्थ के जजों की चढ़ जाती त्योंरिया.
गर्व है हमें की मिल गयी हमें इजाजत
सरोकार है बस इतना की मिल करे सफलता की इबादत.
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